Saturday, 20 June 2020

सहादत

मेरा राज दुलारा कहकर, जिनको मैंने पाला ‌।
लहुलुहान हुआ लाडला, हम सबका रखवाला।।
सिसक रही मां की ममता अपने बेटे को खोकर।
पत्नी भी  हतास दुखी हैं, खाकर ऐसी ठोकर।।
राखी के दिन राखी बांधूंगी,मैं तो रास्ता देख रही थी।
एकलौता भाई खोकर बहन भी जोर से चिख रहीं थी।।
हतास दुखी होकर पिता के आंसू भी बह रहे हैं।
मेरा बेटा शेर था ऐसा गर्व से कह रहे हैं।।
बच्चे पिता को सोता देख मां से क्यों रो रही पुछ रहें।
भोले नन्हे बालक की बातों पर सबके ह्रदय रो रहें।।
रक्षा किया आखिरी सांस तक अपने प्राण लुटाकर।।
धन्य हो तुम बिर सपुतो भारत मां की लाज बचाकर।
अमर हो गए दुनिया में भारत का मान बढ़ाकर।।
खादी की आड़ में जो कर रहे गोरख धंधे है।
मेरी नज़र में आतंकवाद से भी वो बड़े गन्दे है।।
देश के सम्मान को यह चुहे की तरह कुतर रहें हैं।
सता की लालच में आकर,समाज में जहर भर रहे हैं।।

                      जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम 
                       रनजीत कुमार तिवारी 🇮🇳🙏
                       







Friday, 5 June 2020

भारत की हालात

आइए रूबरू होते हैं,आज की हालातों से।
दोष किसका है,चंद छोटी मुलाकातों से।।
हर जगह मौजूद है, दुष्कर्म, भ्रष्टाचार यहां।
आइए रूबरू होते हैं,आज की हालातों से।।
खुद करते हैं हम चाहे ,100 गलत काम खुद।
लेकिन दुसरा ना करें,गलत कोई चाहतें हम।।
क्या मिशाल दूं इस तरह, मैं ऐसे मानवता की।।
ऐ दिल, तु खुद, मुझे इतना बता,दोष किसका है।
चंद मुलाकातों में, आइए रुबरु होते हैं, हालातों से।।
मुझे शिकवा नहीं,किसी की बातों से, मेर लफ्ज़ है।
लड़ने को हालातों से, सच्ची बातों से, देश के नातो से।।
आइए रूबरू होते हैं, आज की हालातों से।
                             धन्यवाद आभार
                          रनजीत कुमार तिवारी



Wednesday, 3 June 2020

मानव सेवा

मानव सेवा न्यास से,होगा पर्यावरण संरक्षण।
गरिबों के कल्याण से, पुलकित होगा तन मन।।
मानव के कल्याण हेतु, रहेंग हम सब नित्य तत्पर।
मानवता का मिसाल बनेंगे, यदि रहे कर्तव्य पथ पर।।
बिजय राजहंस मानव सेवा न्यास, के हम सब धुरंधर।
बिना थके बिना लालच के, करते मानव सेवा।।
भारत से मिटे भ्रष्टाचार,कोई मरे ना भुखा।
टुटने ना पाए हौसला,ऐसी राह बनाकर।।
संकल्प लिया हमने, रक्षा करने को मानव की।
पर्यावरण संरक्षण हो और रोग मुक्त भारत की।।


Wednesday, 13 May 2020

प्रभू से निवेदन

थोड़ी सी कृपा हम पर भी, कर दो हे गोपीनाथ।
दिल से ना बिसारे आपको, दिन हो या हो रात्रि।।
हे करूणा के सागर अगर, कोई हो जाए हम से भुल।
अज्ञानी समझ देना छमा,करना ना हमें खुद से दुर।।
सारे जगत के तारणहार प्रभू, हमको भी शरण में लो।
कर पाए आपका वंदन,थोडी सी कृपा आप करदो।।
भटक गए है कर्तव्य पथ से, रास्ते आप ही दिखलाओ।
अंधकार हो गया है जिवन में, ज्ञान का दिप जला दो।।
जगद्गुरु कृपालु हे नाथ,थोड़ी सी उम्मीद जगा दो।
दे दो जगह अपने चरण रज में,इतनी कृपा वर्षा दो।
जिवन रूपी नैया के,आप ही है खेवनहार प्रभू।
बिच भंवर में है मेरी नैया भी,इसको भी पार लगा दो।।
अहिल्या को को तार दिया, आपने अपने रज कणों से।
सबरी को दिया पुण्य फल प्रभू, उसके जुठे बैर खाके।।
बस इतनी कृपा एक कर दो प्रभू,आया शरण तिहारो।
ले लो शरण में हमको, सब अपराध बिसारो।।
सारा जगत हुआ पापमय,प्रभू इससे हमको उभारों।
नहीं लालसा धन दौलत की,चाहूं सिर्फ शरण तिहारो।।
इतनी सी कृपा कर दो प्रभू, करता रहूं वंदन बारम्बार।
हे दयालु हे दिनबंधू ,मेरी इतनी अरज सुन लिजै।। 
मिले जन्म जब भी यहां ,बस अपनी शरण हमें दीजै।
भटक गया कर्तव्य मार्ग से, ज्ञान पटल खोल दिजै।।
करता रहूं आपका वंदन,यही है हमारी अभिलाषा।
मिले जन्म चाहे कितने भी, यही हमारी है लालसा।।
जय श्री राम,जय श्री कृष्ण 🙏

                                      रनजीत कुमार तिवारी



खोखला मानव जीवन

गजब की विडम्बना है,मानव जाति का इस संसार में।
भ्रष्टाचार खुद ही फैलाते, भ्रष्टाचार भारत से मिटाते।।
कड़वा बचन बोलने के आदी,मधुर बचन का उपदेश सुनाते।।
गजब की विडम्बना है,.................
दुसरे को संकट में देखें अवसर का है लाभ उठाते।
अपनी बारी आते ही, लोगों से उम्मीद जताते।।
मां बाप से प्रेम नहीं है, दुनिया से है प्रेम जताते। 
गजब की विडम्बना है,मानव का इस संसार में।।
जाती वाद का जहर फैलाकर,समाज सेवक कहलाते।। मानवता को कलंकित करते हैं, धर्म का ये पाठ पढ़ाते। सोचा इन्हें भी याद दिला दूं,कुछ भी नहीं है साथ जाते।
दुसरे को परेशान देखकर, खुशी के मारे नहीं अघाते।।
दुसरो का सम्मान नहीं दिल में,वो सम्मान कहां है पाते।
खुद कितने भी बुरे हो,औरों की बुराई करते नहीं अघाते।।
गजब की विडम्बना है,मानव का इस संसार में.....
                                           धन्यवाद आभार
                                    📝रनजीत कुमार तिवारी

Sunday, 10 May 2020

संकल्प

जिवन अनमोल है, यूं व्यर्थ न गवाइए।
अपने कुछ पल मानवता में भी लगाइए।।
धरा है पाप से सहमी,आओ मिलकर उद्धार करें।
मातृभूमि की रक्षा करें,ऐसा मन में सब बिचार करें।।
हवा हो गयी है दुषित, पेड़ों को हम काट रहें।
पानी में है फैला जहर,मानव पिडा काट रहे।।
नफरत फैली है जग में,  ऐसे जैसे कोई महामारी।
हिन्दू मुस्लिम करके नेताओं ने भी बना ली फुलवारी।।
मानव के रूप में जन्म लिया तो अपने को कृतार्थ करें।
देश के गद्दारों को आओ मिलकर परित्याग करें।।
देश के बिर सपुतो के आत्मा,जब कोई सवाल करें।
शर्म से ना झुके शिश, ऐसा कुछ कार्य करें।
आओ बच्चों को भी संस्कृति से परिचित करवाते हैं।
खत्म हो रही संस्कारों को फिर से मिलकर बचाते हैं।।
जबतक अन्न शुद्ध नहीं मिलेगा ,यही रहेगा परिणाम।
खाद्य पदार्थों को खाकर मरता रहेगा इन्सान,मरता रहेगा इन्सान।।
                                        धन्यवाद
                          आपका रनजीत कुमार तिवारी📝
         

Sunday, 1 March 2020

जरूरत

नमस्कार दोस्तों मैं रनजीत आपके लिए एक नयी कहानी लेकर आया हूं। मुझे विश्वास है आपको मेरी कहानी अच्छी लगेगी और कोई त्रुटी हो तो माफ़ करिएगा।अब कहानी पर आते हैं।
एक परिवार में कितने सदस्य होते हैं। पति-पत्नी,मां बाप, बच्चे यही हम जानते हैं। लेकिन सच तो यह भी और ऐसा होना भी चाहिए। जहां आप रहते हैं और जितने लोग वहां रहते हैं। सबको अपना परिवार समझा जाए।पर अफसोस है आज के समय में ऐसा नहीं है।आज घर परिवार में ही सब लोग दुर हो गये है।इसका जो भी कारण हो लेकिन सच्चाई है।एक लड़का था जिसका नाम चिंतामणि गोस्वामी था।वह बहुत सुन्दर मिलनसार और मृदु भाषी था। उसको सब लोग पसंद करते थे।घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण कई बार उसे और उसके परिवार को भुखे रहना पड़ता था। चिंतामणि बहुत दुखी होता  पर क्या करें समझ नहीं आ रहा था। मां बाप का एक ही लड़का था और तिन बहने जो उससे छोटी थी। चिंतामणि के पिता अब बुढ़े हो चुके थे। अपनी पढ़ाई बहनों की शादी और भी बहुत सारी जिम्मेदारी चिंतामणि को सता रही थी। उसने फैसला किया अब मुझे काम करना पड़ेगा। वह अपने आस पास काम तलासने लगा। बहुत ढुढने के बाद उसे एक दुकान में काम मिला वह मन लगाकर काम करने लगा।अब उसे खाने पीने की दिक्कत नहीं होती। उसने पढ़ाई छोड़ दी वह दुकान में काम करता ।और अपने घर के काम में हाथ बटाता । लेकिन चिंतामणि की परेशानी यही खत्म नहीं हुई थी। बहनों की शादी और दहेज की चिंता उसे खोखला करती जा रही थी। चिंतामणि का स्वभाव इतना सरल था उसने किसी व्यक्ति को तकलीफ़ नहीं दिया था कभी ।और नहीं किसी को महसूस होने देता मैं तकलीफ में हूं।एक बार वह शहर किसी काम से जा रहा था।उसे एक बृध व्यक्ति दिखा जो रोड पर गिरा पड़ा था। बहुत सारे लोग आ जा रहे थे। लेकिन किसी ने उस बुजुर्ग व्यक्ति पर ध्यान नहीं दिया।वह काफी बुजुर्ग व्यक्ति थे करिब 85-90 साल के होंगे। चिंतामणि उस बुजुर्ग के पास गया और उनसे बोला बाबा। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया चिंतामणि के कयी बार बोलने के बाद भी। वह जबाब नहीं दे पा रहें थे। चिंतामणि उनको उठाकर पास के एक अस्पताल में भर्ती कराया कुछ समय बाद जब उनको होस आया उनसे पुछा आप कहां रहते हैं। उन्होंने अपनी सारी कहानी सुनाई उस बुजुर्ग का कोई भी नहीं था।और पत्नी भी बहुत साल पहले ही चल बसी थी। चिंतामणि बहुत दुखी हुआ और उनको अपने साथ घर लेकर आया ।और अपने घर पर उनको रहने
के लिए बोला कुछ दिनों बाद ही वह भी चल बसे लेकिन जाते जाते उन्होंने चिंतामणि की जिंदगी ही बदल दी।वह व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि एक हिरे के बड़े व्यापारी थे।और जाते जाते भी उन्होंने एक अनमोल हिरे का व्यापार किया। अपनी जिंदगी की सारी कमाई का वसियत चिंतामणि के नाम कर दिया।इस तरह चिंतामणि की जरूरत पुरी होगी उसने कभी सोचा या उम्मीद नहीं किया होगा। दोस्तों आपको मेरी कहानी कैसी लगी मुझे जरूर बताएं। धन्यवाद