Monday, 27 February 2023

ओहार

आदरणीय ,
  पाठकों मेरा प्यार भरा नमस्कार
हमारा भारतीय समाज अनेक साहित्यिक परम्पराओं का निर्वहन अलग- अलग स्थानों पर मांगलिक आयोजन करके करता हैं या यूं कहें तो भारतीय प्रथाओं संस्कृति परम्पराओं का निर्वहन करते  हुए आज हैं। जिसमें पुर्वांचल में एक प्रचलित प्रथा मुंडन ओहार या बार भी है।  भारतीय संस्कृति उपनयन संस्कार परम्पराओं का निर्वाह करता बलिया का एक हिन्दू ब्राह्मण परिवार हो या शुद्र जाती सभी अपने बच्चों के मुंडन संस्कार को आज लगभग सैकड़ों सालों से अधिक समय से श्रद्धा से करते आ रहे हैं। जैसी जहां की ऋति रही या रहती है वैसे ही परम्पराओं का निर्वहन सभी करते हैं भारत के विभिन्न राज्यों स्थानों के लोग अलग अलग स्थानों पर अलग अलग तरीकों से धार्मिक आयोजन करते हैं यहां हर पर्व त्योहार उत्सव को हर्ष उल्लास से मनाया जाता है तरिके अनेकों मिलती है अपने भारत देश में लेकिन उत्तर प्रदेश पुर्वांचल बलिया से सट्टे जिलें जैसे -गाजिपुर बक्सर आरा देवरिया छपरा वनारस जहां तक हमने देखा गंगा किनारे ही लोग अपने 05 साल तक के बच्चों का मुंडन (उपनयन) संस्कार किसी सुभ लग्न में देखकर मां पतित पावनी मंगलमयी मां गंगा जी की पुजा बंधु बांधवों के साथ विधी विधान से नाव पुजा करके करते हैं। जिसको ओहार , बार (मुंडन) के नाम से भी जाना जाता है संस्कृति में इसको उपनयन संस्कार परम्पराओं के नाम से जाना जाता है। इसमें सामर्थ्य के हिसाब से सामान्य जिवन जिने वाले लोग हो या एक गरिब व्यक्ति या धनवान सभी अपनी श्रद्धा से मां गंगा जी की पुजा अपने बंधु बांधवों को इकट्ठा करके करते हैं। जिसकी जैसी सामर्थ्य होता है वह उतना ही खर्च पुजा पाठ प्रशाद वितरण करके श्रद्धा पूर्वक करता हैं। इसको  उत्तर प्रदेश बलिया से सट्टे लोकल एरिया में ओहार या बार के नाम से जाना जाता है। किसी बच्चे के पहली बार बाल कटाने वाले दिन मां गंगा जी के घाटों पर लोग अपने बंधुओं के साथ इकट्ठा होकर धुम धाम से श्रद्धा पूर्वक मनातें है। बहुत सारे लोग अपने बच्चों के मुुंडन मंदिरो में भी कराते हैं मैं खुद बलिया का हूं इसलिए हमने भी कयी अवसरों पर सम्मिलित होकर आनन्द लिया है। इन परम्पराओं को आज भी लोग निभातें हुए विश्व कल्याण हेतु निस्वार्थ संस्कृति परम्पराओं में योगदान कहीं ना कहीं हिन्दू भारतीय करते हैं। वस यही हमें हिन्दू भारतीय होने का गर्व कराती है यह लेख मेरे खुद के विचार से है। भले ही मेरा यह लेख  किसी को पसंद आए या ना आए आजिवन मरते दम तक सच्च को सच्च लिखता रहूंगा सच्चाई ईमानदारी के रास्ते पर चलते रहना चाहिए ऐसा सिख हम सबको देने वाले अपने वरिष्ठ परिवार के लोगों के ऊपर हमेशा गर्व रहेगा हिन्दू सभ्यता संस्कृति की बदौलत ही आजतक अपने धर्म की रक्षा होती रही है।  इसमें सभी हिन्दू का बराबर का योगदान है जो इसको हजारों सालों से निभा रहे हैं जबकि आक्रांताओं ने कोशिश हजारों सालों से तोड़ने की कोशिश करते आ रहे हैं हमारे धर्म संस्कृति परम्पराओं को  विखेरने तोड़ने के लिए हजारों कोशिश की है दुश्मनों ने लेकिन यह आज भी अपने वजूद में है जो हमेशा रहेगा भी मेरे लेख का तात्पर्य केवल हिन्दू धर्म की रक्षा से है मैं रहूं या ना रहूं यह देश और मेरा धर्म सुरक्षित रहना चाहिए मेरी लेख अच्छी लगे तो मुझे सब्सक्राइब जरूर करें और मेरा मनोबल बढ़ाने की कृपा करें। धन्यवाद जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम 💐🙏

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